सदियों से सनातन, आध्यात्म और श्रद्धा का पवित्र स्थान
श्री नीलकंठ महादेव मंदिर भारत के राजस्थान के दौसा शहर में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में कछवाहा वंश के राजा सोधदेव ने करवाया था। अरावली पर्वतमाला की हरी-भरी वादियों और शांत वातावरण में स्थित यह प्राचीन मंदिर न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रकृति की गोद में बसा एक अलौकिक स्थल भी है। मंदिर का निर्माण पारंपरिक राजस्थानी शैली में किया गया है, जिसमें पत्थरों की नक्काशी, सुंदर मंडप और कलात्मक स्तंभ विशेष रूप से आकर्षित करते हैं।
यह शिवलिंग किसी मानव द्वारा स्थापित नहीं किया गया है, बल्कि यह प्राकृतिक रूप से भूमि से उद्भूत हुआ है, जिसे ‘स्वयंभू’ कहा जाता है। मान्यता है कि यह स्थान अत्यंत शक्तिशाली और जागृत है — यहाँ की गई पूजा, साधना और प्रार्थना शीघ्र फलदायी होती है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि पर्यावरणीय रूप से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ आने वाले भक्तों को प्राकृतिक शांति, स्वच्छ वायु और पर्वतीय सौंदर्य का अद्वितीय अनुभव मिलता है। सुबह और शाम की आरती के समय मंदिर परिसर मंत्रोच्चार और घंटियों की ध्वनि से गूंज उठता है, जिससे संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
ॐ नमो भूतनाथाय महाकालाय धीमहि। श्मशानवासी शूलपाणे रुद्राय नमो नमः॥ भूतगणैः परिवृतं त्रिनेत्रं कृत्तिवाससम्। कालस्य कालं शरणं प्रपद्ये शिवं विभुम्॥
संपूर्ण सृष्टि पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बनी है। शिव उन पंचभूतों के स्वामी हैं, इसलिए वे भूतनाथ कहे जाते हैं। मंदिर में स्थित यह द्वितीय स्वयंभू शिवलिंग भगवन शिव के भूतनाथ स्वरुप को समर्पित है।
श्री भूतनाथ महादेव मंदिर केवल एक पूजास्थल नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का केंद्र है। यहाँ आकर साधक अपने भीतर के अंधकार से सामना करते हैं, भय को त्यागते हैं और शिव की अनंत कृपा में लीन हो जाते हैं।
5:00 AM - 10:00 PM
6:00 AM, 7:00 PM
धर्म, ज्ञान और सेवा के आदर्श स्वरूप पूज्य स्वामी जी का जीवन समाज के लिए एक जीवंत प्रेरणा है। उनका व्यक्तित्व संयम, करुणा और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है। बचपन से ही वे आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के प्रति आकर्षित रहे और युवावस्था में उन्होंने सांसारिक मोह त्यागकर सन्यास मार्ग को अपनाया। स्वामी जी का उद्देश्य केवल आत्म कल्याण नहीं, बल्कि समाज को धर्म, सदाचार और सात्विक ज्ञान के पथ पर ले जाना था।
धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों की गरिमा को बनाए रखना समाज की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसी भाव को आत्मसात करते हुए पूज्य स्वामी जी ने मंदिर की सेवा और जीर्णोद्धार को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया। उनका योगदान न केवल भौतिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी मंदिर को जागृत बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
श्री नीलकंठ महादेव धर्म सेवा समिति का गठन स्वामी जी के इन्ही विचारों से प्रेरित होकर किया गया, आज श्री नीलकंठ महादेव धर्म सेवा समिति मंदिर के रखरखाव के लिए समर्पित है।
अध्यक्ष
मंदिर की सम्पूर्ण व्यवस्था का नेतृत्व
सचिव
कार्यक्रमों,आयोजनों का समन्वय एव प्रशासनिक सहयोग
कोषाध्यक्ष
दस्तावेज़ों का संधारण, पत्राचार का प्रबंधन, वित्तीय लेन-देन का उत्तरदायित्वय
श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को बाबा भोलेनाथ का श्रृंगार, भव्य आरती एवं तीसरे सोमवार पर तीन दिवसीय लक्खी मेले का आयोजन| मेले कि शुरुवात पूर्व संध्या रात्रि जागरण, फूल बंगला झांकी के साथ होती है, अगले दिन भक्तो को दर्शन, सायं महा आरती, रात्रि को श्री नीलकंठ महादेव धर्म सेवा समिति कि वार्षिक मीटिंग एवं नए अध्यक्ष का चुनाव, मंगलवार को बाबा कि डोली ढोल नगाड़ो के साथ नगर भ्रमण पर निकलती है| साल में यही एक मात्र समय होता है जब बाबा नगर से मिलने आते है| ये एक अनूठा अनुभव है जिसमे भक्त नाचते, गीत गाते यात्रा में शामिल होते है, बाबा का स्वागत करते है और इसी के साथ अगले साल बाबा के इंतज़ार के साथ मेले का समापन होता है|
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥" महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का एक प्रमुख और पावन पर्व है, जो भगवान शिव के अद्भुत, दिव्य और तांडवमय स्वरूप की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आता है और इसे मंदिर में भक्ति, ध्यान, व्रत और जागरण के साथ हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस रात मंदिर में चार प्रहर की पूजा का आयोजन किया जाता है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी रात्रि को भगवान शिव और माता पार्वती का पवित्र विवाह संपन्न हुआ था। यही वह रात्रि है जब शिव तत्त्व की ऊर्जा इस धरती पर विशेष रूप से सक्रिय होती है। यह आत्मा के जागरण, अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा, और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक पर्व है।
"बाबा भोलेनाथ मेरी नैया को उबारो ना, मेरे केवटिया बन जाओ ना" मंदिर में भक्तो द्वारा गाया जाने वाला यह गीत इतना भावपूर्ण है कि सीधे हृदय में उतरता है एवं भक्तो की गायकी इतनी सजीव कि हर शब्द मानो ज़िंदगी से बात कर रहा हो। दीयों की रोशनी, धूप-चंदन की सुगंध और भक्तों की सामूहिक स्वर लहरियाँ मिलकर ऐसा वातावरण बनाती हैं, मानो स्वयं बाबा भोलेनाथ भक्तो में समाहित हों यह एक ऐसा अनुभव है जिसे महसूस किया जा सकता है, पर शब्दों में बाँध पाना कठिन है। अनेक भक्त यहाँ रोजाना भजन संध्या में शामिल होते है एवं भक्ति में लीन होकर भजन और बाबा कि आरती करते है| जयकारो कि गूंज के साथ आरती का समापन होता है।